Menu
blogid : 8865 postid : 776795

अपनी खुशहाली की दुआ मांगने आते हैं काको .

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
  • 91 Posts
  • 43 Comments

सूफी संतों की फेहरिस्त में बीबी कमाल का नाम भी प्रमुख लोगों में है। आईने अकबरी में महान सूफी संत मकदुमा बीबी कमाल की चर्चा की गयी है। जिन्होंने न सिर्फ जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सूफीयत की रौशनी जगमगायी है। इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हटिया उर्फ बीबी कमाल है। दरअसल बचपन से ही उनकी करामात को देखकर उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतूल्लाह अलैह उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे यही कारण है कि वह इसी नाम से सुविख्यात हो गयी। इनके माता का नाम मल्लिका जहां था। बीबी कमाल के जन्म और मृत्यु के बारे में स्पष्ट पता तो नहीं चलता है लेकिन जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक 1211 ए.डी में उनका जन्म हुआ था तथा लगभग 1296 एडी में इंतकाल हुआ था। बीबी कमाल में काफी दैवीय शक्ति थी। कहा जाता है कि एक बार जब बीबी कमाल काको आयी तो यहां के शासकों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया। खाने में उन्हें चूहे और बिल्ली का मांस परोसा गया। बीबी कमाल अपने दैवीय शक्ति से यह जान गयी कि प्याले में जो मांस है वह किस चिज का है। फिर उन्होंने उसी शक्ति से चूहे और बिल्ली को निंदा कर दी। बीबी कमाल एक महान विदुषी तथा ज्ञानी सूफी संत थीं जिनके नैतिक, सिद्धांत, उपदेश, प्रगतिशील विचारधारा, आडम्बर एवं संकीर्णता विरोधी मत, खानकाह एवं संगीत के माध्यम से जन समुदाय तथा इंसानियत की खिदमत के लिए प्रतिबद्ध एवं समर्पित थीं। काको स्थित बीबी कमाल के मजार से 14 कोस दूर बिहारशरीफ में उनकी मौसी मखदुम शर्फुद्दीन यहिया मनेरी का मजार है। ठीक इतनी ही दूरी पर कच्ची दरगाह पटना में उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जगजौत रहमतुल्लाह अलैह का मजार है।

1. बीबी कमाल का मजार- महान सूफी संत बीबी कमाल का मजार मुख्य दरवाजा के अंदर परिसर में अवस्थित है। रुहानी इलाज के लिए प्रसिद्ध मन्नत मानने तथा ईबादत करने वाले लोग इनके मजार को चादर एवं फूलों की लरीयों से नवाजते है। यहां उर्स के मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

2. कड़ाह- जनानखाना से दरगाह शरीफ के अंदर जाने के साथ एक काले रंग का पत्थर लगा हुआ है, जिसे कड़ाह कहा जाता है। यहां आसेब जदा और मानसिक रुप से विक्षिप्त लोग पर जूनूनी कैफियततारी होती है। इस पत्थर पर दो भाषा उत्कीर्ण हैं जिसमें एक अरबी है, जो हदीस शरीफ का टुकड़ा है और दूसरा फारसा का शेर। इसी पर महमूद बिन मो. शाह का नाम खुदा है, जो फिरोज,शाह तुगलक का पोता था।

3. रोगनी पत्थर- दरगाह के अंदर वाले दरवाजे से सटा एक छोटा सा सफेद और काला पत्थर मौजूद है। लोगों का कहना है कि इस पत्थर पर उंगली से घिसकर आंख पर लगाने से आंख की रोशनी बढ़ जाती है। आम लोग इसे नयन कटोरी के नाम से जानते है।

4. सेहत कुआं- दरगाह के ठीक सामने, सड़क के दूसरे तरफ कुआं है, इसके पानी के उपयोग से लोगों के स्वस्थ्य होने का किस्सा मशहूर है। बताया जाता है कि फिरोज शाह तुगलक, जो कुष्ट से ग्रसित था, ने इस पानी का उपयोग किया और रोग मुक्त हो गया।

5. वका नगर- दरगाह से कुछ दूरी पर अवस्थित वकानगर में हजरत सुलेमान लंगर जमीं का मकबरा है, जो हजरत बीबी कमाल के शौहर थे। एैसी मान्यता है कि यहां की जमीन जन्नत की जमीन से बदली गयी थी।
कमाल है काको की यह पावन मिट्टी! जहां देश दुनिया के लोग इस मिट्टी को नमन कर अपनी खुशहाली की दुआ मांगने आते हैं. देश -दुनिया में जिसका नाम वो भला सदियों तक कैसे रहा गुमनाम. सरीखे कई सवाल लोगों के मन-मिजाज में वर्षो से कौंधता रहा. इस ऐतिहासिक धरती मगध की विरासतों में एक सांप्रदायिक सद्भावना की भी मिसाल रहा है बीबी कमाल का मजार. कहा जाता है कि अफगानिस्तान के कातगर निवासी हजरत सैयद काजी शहाबुद्दीन पीर जगजोत की पुत्री तथा सुलेमान लंगर रहम तुल्लाह की पत्नी थी बीबी कमाल. सन 1174 में बीबी कमाल अपनी पुत्री दौलती बीबी के साथ काको पहुंची थी.दिव्य शक्ति और चमत्कारी करिश्मे से लोगों को हैरान कर देनेवाली बीबी कमाल की ख्याति चंद दिनों में ही दूर-दूर तक फैल गयी. बीबी कमाल बिहारशरीफ के हजरत मखदुम शर्फुद्दीन बिहारी याहिया की काकी थी. देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव भी इन्हीं को प्राप्त है. सूफी संतों के संरक्षण में तंत्र विद्या का प्रचारक भी बीबी कमाल ताउम्र बनी रही. राजा का आश्रय मिलने के बाद वो सूफी धर्म कबूल कर प्रचार करने लगी. फिरोजशाह तुगलक जैसे बादशाह ने भी बीबी कमाल को महान साध्वी के तौर पर अलंकृत किया था. कमाल बीबी तंत्र मंत्र विद्या में भी निपुन थी.मानवता की सेवा करना ही मानव धर्म समझती थी. 13वीं सदी में काको स्थित पनिहास के किनारे इस दिव्य आत्मा ने अपना शरीर त्याग दिया. मगर उनके प्रभाव का प्रकाश पुंज आज भी देश-दुनिया में फैला है. बीबी के मजार पर शेरशाह, जहानआरा आदि मुगल शासकों समेत कई शख्सियतों ने भी उस जमाने में चादरपोशी कर सलामती की दुआएं मांगी थीं. आज सांप्रदायिक सद्भावना का केंद्र बन चुका यह मजार अपने आप में वाकई अनूठा है.710 हिजरी के आसपास दिल्ली के मुगल बादशाह फिरोजाशाह तुगलक बिहार शरीफ जाने के क्रम में मजार में विश्राम कर चर्मरोग से छुटकारा पाया था। हजारों वर्ष पूर्व महाराज कोका की पत्‍‌नी केकई एवं के वंशज थे। महारानी केकई के निमंत्रण पर वह उनके दरबार में गयी थी। राजा के व्यवहार से क्षुब्ध होकर बीबी कमाल ने प्याला उलट दिया था परिणामस्वरुप पूरी वस्ती उलट गयी थी। आगे चलकर उक्त स्थान को काको के नाम से जाना गया।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply